मै चौसठ तकिए लाई बेबे हे सोवनिया परदेश गया।

मै दमदम महला चढ गई बेबे हे पाछे तै मेरा जेठ चढा।

मैनै पाछा फिर के देखा बेबे हे किलो मिठाई लिये खड़ा।

मैनै महल तैले तै पटका बेबे हे ऊपर तै गेरी खाट जली।

बाहरने तै सुसरा आ गया बेबे हे यो रै रत्नसिंह के रै हुया।

टुबेल पै नाहन गया था बाबु हो ऊपर कच्छा सुकान गया।

नीचे के खुटी ना थी बेटा रै ऊपर के टिन्डे लेन गया।

म्हारे ऊत घरा की आई बाबू हो म्हारी आबरु तार लई।

म्हारे भले घरा की आई बेटा हो म्हारी ईज्जत डाट लई।

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