दिल्ली के परेनै एक गाँव बावड़ा पिता मेरे नै
छोरा ढुंढा वो भी बावला।
ठा धोगड़ पानी नै चाली छोरा मै बैठा
सारे छोरे नहाए धोए सूर सा बैठा।
पानी भर के उलटी आई गैल हो लिया
पाछा फिर के देखन लागी रेल हो लिया।
मै खड़ी तरवाने नै वो टांड पै चढ़गा दिया
लेके देखन लागी माट मै बड़ैगा।
हाथ मार के देखन लागी शक्कर मै बड़ैगा
घी मै घाल के खावन लागी पेट मै बड़ैगा।
हलवा कर दे हलवा कर दे हलवा कर दे ना
छोटी कोन्या बडी थाली वाहे भर दे ना।
सेर चून की करी लापसी घेरा मै लेगा
सारे बालक रोवन लागे हमनै ना देखा।
चूप रहो बालको थारा बाबू आ जागा
ज्यादा बोलोगे तो वो थमनै खा जागा।
पानी प्यादे पानी प्यादे पानी प्यादे ना
तीन मटके पानी पी गया और प्यादे ना।
पैंट पहरी पैंट पहरी ऊपर तै कच्छा बोलन
का उनै लख्खन कोन्या उल्लु का पठ्ठा।
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