हरषाती चली गुण गाती चली चली पनिया भरण शिव नार रे सागर पे उतारी गागरिया।

रुप देख के समुंद्र पूछे कौन पिता महतारी।कौन 

गाँव की रहने वाली कौन पुरुष घर नारी।

धीरे-धीरे बोली गौरजा पाया है रुप अपार रे 

सागर पे उतारी गागरिया।

हरषाती चली💐💐💐💐💐💐💐💐💐।

राजा हिमाचल पिता हमारे मैनावती है महतारी।

शिव भोले है पति हमारे मै उनकी घरवाली।

हम जल ले जावे मेरा पति नहावे सुन लो वचन 

हमार रे सागर पे उतारी गागरिया।

हरषाती चली💐💐💐💐💐💐💐💐💐।

कहे समुंद्र छोड भोला को घर-घर अलख जगावे।

चौदह रत्न भरे मेरे घर मै बैठी मौज उडावै।

शिव पीवे भंगिया और बे रंगिया क्यों सहती है

 कष्ट अपार रे सागर पे उतारी गागरिया।

हरषाती चली💐💐💐💐💐💐💐💐💐।

क्रोधित होकर चली गौरजा झट भोला घर आई।

आपके होते तके समुंद्र सारी व्यथा सुनाई।

शिव सागर पे गयो और मंथन कियो लिया 

चौदह रत्न निकाल रे सागर पे उतारी गागरिया।

हरषाति चली💐💐💐💐💐💐💐💐💐।


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