
मेरी लगी श्याम संग प्रीत की दुनिया क्या जाने ।मुझे मिल गया मन का मीत ।।………..
छवि लखि मैंने श्याम की जब से।
भई बावरी मै तो तब से।।
नाता तोड़ा मैंने जग से।
ये कैसी पागल प्रीत ।।
मोहन की सुन्दर सुरतिया।
मन मे बस गई मोहनी मुरतीया।।
लोग कहे मै भई बावरीया।
जब से ओढी श्याम चुनरिया।।
मैंने छोडी जग की रीत ।
हरदम अब तो रहूँ मस्तानी।
लोक लाज दीनी बिसरानी।
रुप राशि अंग अंग समानी।।
हैरत हैरत रहुँ दिवानी।
मै तो गाऊँ खुशी के गीत।।
मोहन ने ऐसी बंशी बजाई।
सबने अपनी सुध बिसराई।
गोप गोपियाँ भागी आई।।
लोक लाज कुछ काम ना आई।
फिर बाज ऊठा संगीत।।
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